झिझक

आँखों में अनगिनत एहसास हैं
मानो कुछ कहने को बेताब सी
होंठ बंद हैं जैसे सिल गयी हैं
आवाज़ गुमनाम है जाने क्यों

धड़कनें तेज़ होती हुयी
मानो जैसे मेरे काबू से परे हो
चोरी छुपे नज़रें ताकती तुमको
यकायक झुक जाती हैं जाने क्यों

वो मुस्कुराहट को क्या बयाँ करें
अल्फ़ाज़ कम पड़ते हैं तारीफ़ में
हसीं झलकती है तुम्हारे होटों पे
खुश हम होते हैं जाने क्यों

हवा के झोकों में ज़ुल्फें लहराती हुईं
और धीरे से उन्हें सवाँरती तुम
सुलझा तुम रही हो अपने बालों को
उलझ मैं गया हूँ जाने क्यों

इंतज़ार रहता है तुम्हारे आने का
तुम बिन लम्हे मानो साल जैसी
तुम्हे देख अजीब सा सुकून मिलता है
ज़िन्दगी इक इंतज़ार बन गयी है जाने क्यों

इक अटके टेप रिकॉर्डर सी ज़ेहन में बसी हो
भूले ना भुलाए याद आती तुम हर घडी
अपने खोते हुए वजूद की तलाश में
तुममे अपने को ढूंड रहा हूँ जाने क्यों

हज़ार बार कोशिश की एहसासों को बयाँ करने को
हर बार ज़ालिम ज़ुबान साथ छोड़ देती है
न जाने क्या झिझक है जो रोकती है हमें
एक सपना बन के रह गयी तुम जाने क्यों


Hear the poem recited by me