टिक टिक करती येह घड़ी
फ़िर से येह इशारा करती हुई
की बीत रही है इक और साल
शुरू होती हुई इक और साल
रात के इस सन्नाटे में
अपने भीतर मैं जब झाँकता हूँ
और अपने ऑप से सवाल करता हूँ
कि क्या मैं वाक़ेई में खुश हूँ
और अंदर से यह आवाज़ आती है
की ख़ुशी के मायने क्या हैं
ख़ुशी के पैमाने क्या हैं
अमित तुम्हारे लिए आखिर ख़ुशी क्या है
ख़ुशी तो उस प्लास्टिक में ठूसी ice candy में थी
जिस्के लिए चार आने जमा होते थे
ख्वाहिशों कि लड़ी बुनी जाती थी
और icecream वाले का इंतज़ार होता था
ख़ुशी तो उस दो रुपये कि पानी पूरी में थी
जिसके लिए फिर से कई चार आने जमा होते थे
पापा से कई मिन्नत्ते होतीं थी
और भाई के साथ आधे -आधे कि डील होती थी
ख़ुशी तो वो पडोसी कि बजाज चेतक कि सवारी में थी
जिसके लिए अनगिनत प्लीज़ प्लीज़ कि रट लगति थी
ख़ुशी तो वो हिरेमठ अंकल कि टीवी में रामायण में थी
जिस्के लिए घर में तरह तरह के बहाने बुने जाते थे
ख़ुशी तो वो mickey mouse के label इखट्टे करने में थी
वह WWF कि कार्ड इखट्टे करने में थी
खुशी तो वो radium स्टीकर कि दलाली में थी
कंचे जीत कर इखट्टे करने में थी
ख़ुशी हर दिवाली में मिलने वाली नई ड्रेस में थी
First rank कि वो सालाना एक dinner outing में थी
डिबेट में जीत कर पापा को खुश देखने में थी
Maths में "सौ में सौ " लाने में थी
ख़ुशी वो कैन्वास शूज़ को और सफ़ेद करने में थी
नए किताब को ब्राउन कवर चढ़ाने में थी
कैसेट को रेनॉल्ड्स पेन से घुमाने में थी
बिग बबूल के बब्बल बनाने में थी
ख़ुशी शक्तिमान, He -Man की दिलेरी देखने में थी
विक्रम और बेताल की सस्पेंन्स में थी
देख-भाई-देख की ठहाकों में थी
चित्रहार और रविवार की शाम की मूवी में थी
ख़ुशी उधार की Ray-ban पहनने में थी
वो बेश क़ीमती घड़ी को showroom में ताकने में थी
वो Harley -Davidson कि तस्वीर पर लार टपकाने में थी
वो Mercedes को देख कर भौचक्के होने में थी
ख़ुशी तो वो Microsoft, Intel में काम करने के सपनों में थी
लाखोँ करोड़ों कमाने कि आस में थी
ताज में एक कप चाय पीने के ख्वाब में थी
Aeroplane में बैठकर दुनिया घूमने कि लाल्सा में थी
आज Intel अपनी जेब में है पर क्या मैं खुश हूँ
करोड़ों में ना सही पर लाखों में कमाता हूँ पर क्या मैं खुश हूँ
Taj और ललित महल के अनगिनत दर्शन के बाद भी क्या मैं वाकई खुश हूँ
Aeroplane की कईयों सैर के बाद क्या मैं खुश हूँ
Ray-Ban, Tissot, Rolex, Harley
सब कुछ तो खरीद सक्ता हूँ में आज
बचपन की सारी आशाएं आज हकीकत बन सक्ती हैं
पर क्या मैं वाकई खुश हूँ ?
Sunday की सुबह की वो long run
दिल को खुश कर देती है जाने क्यों
Sunday की breakfast के बाद वह छोटी सी power nap
और फिर लगता है बस ज़िन्दगी यहीं थम जाए
शाम को ऑफिस के बाद शू लेस खोल्ते खोल्ते
पीछे से जब तीन फुटिया hug करता है
और मुस्कुराकर कहता है I Love You
तो लगता है अब ज़िन्दगी से और मांगू तो क्या मांगूं
महीने दो महीने में एक बार
Nachos और popcorn में डुबकी लगते हुए
जब दिल को छूती हुई Movie देखता हूँ
तो लगता है बस हम्ने तो ज़िन्दगी जी ली आज
वो साल में एक बार अपने अपनों के साथ दिवाली
वो भाई के साथ मुस्कुराहट भरी चंद घडी
वो बेटे के साथ मस्ती भरी होली
ज़िन्दगी और क्या है, बस इन्ही चंद लम्हों की फुलझड़ी
ख़ुशी तो ओस की बूँदों सी है
जो ज़िन्दगी की लॉन पर बिछी हुई है
मुलायम, नाज़ुक और चम्चमति हुई
चंद लम्हों की मेहमान
इन ओस की बूँदों को समेट नहीं पाऊंगा
पिघल जाएंगी
इनकी नेकलेस नहीं बना पाऊंगा
गायब हो जाएंगी
इन ओस की बूँदों के होने का एहसास है मुझे
उन्के क्षण मात्र के अस्तित्व का आभास है मुझे
वाह रे भगवान तूने भी अजब ज़िन्दगी बनाई
पल पल बीतती इन लम्हों में ही खुशियाँ हैं समाई
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